Thursday 6 March 2014

प्रेम


भगवान् बाबा कहते हैं, प्रेम सभी शास्वत मूल्यों का आधार और सतत प्रवाहित धारा है.
प्रकृति में इतनी विविधता है, विविध अस्तित्व देखने मात्र में हैं. वास्तविकता तो एक है. जैसे एक पंखा है,एक बल्ब है, फ्रिज है और माइक्रोवेव है. पर सबको चलाने वाली शक्ति,बिजली तो एक है न. जिसको जैसा बनाया गया उसे वह विद्युत् शक्ति वैसा ही चलाती है.
तो इन सबका सत्य तो एक है न. – विद्युत् जिसके बिना यह सब केवल तस्वीरें हैं, जैसे आईने में झलकती हमारी शक्लें.
अगर जीवित संसार में देखें तो तीन प्रमुख आयाम दिखलाई पड़ते हैं. खनिज जगत, वनस्पति जगत और प्राणी जगत. पर देखो तो यह तीनों परस्पर एक दूसरे पर आश्रित हैं और एक दूसरे की मदद करते हैं. खनिज जगत वनस्पति जगत को जीवित रखता है. वनस्पति जगत प्राणी जगत को. प्राणी जगत वनस्पति और खनिज दोनों जगत की रखा करता है. वनस्पति जगत प्राणी जगत द्वारा उत्सर्जित कार्बन डाइ आक्साइड को सोखकर भोजन प्राप्त करता है और प्राणी-जगत एवं स्वयं के जगत को प्राणप्रद आक्सीजन मुहैया कराता है.
इस प्रकार के परस्पर आश्रय से ही यह संसार चलता है एवं शास्वत बना रहता है. तीनों जगत एक दुसरे के प्रतिद्वंदी न होकर सहयोग और समझदारी से रहते और सुख दुःख सहते हैं.  जिससे शान्ति और व्यवस्था बनी रहती है. व सबको सुख का अनुभव होता है. कोई किसी से नहीं लड़ता. प्रकृति का एक अंग नष्ट होकर भी दूसरे को जीवित रखने के लिए उद्यत होता है. हिंसा का कोई भाव नहीं होता.
और सभी अंगों में यह समझदारी प्रेम की धारा से पोषित होती है. परस्पर सहयोग, त्याग और अहिंसा का भाव कायम रहता है.
निश्चय ही प्रेम तो हमारे जीवन का आधार है. सबकी फिकर रखने वाला ईश्वर है.
इसे समझें और सृष्टि की व्यवस्था में सहयोग देने के लिए प्रेम से रहें.




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