गुरु आलोक रश्मि सा स्पर्श कर जाता है
अज्ञानता के अन्धकार को पल में हटाता है
गुरु के चरन वंदन से स्वर्ग का पट खुल जाता है.
केवल प्रेम स्नेह की दक्षिणा गुरु स्वीकार करते हैं
सद्गुरु के प्रेम में अपार करुणा घुल जाती है
मंजिल हमारे, गुरु की दया से सुगम बन जाती हैं
गुरु कृपा के रूप में पाया हमने बचपन में हमारी माँ
शैशव में पिता रूप में
युवा समय में शिक्षक गुरु हैं और ..
आध्यात्मिकता के पहले पग में,
कर्म की राह बताकर धर्म का मार्ग बताते
अपने शिष्य को प्रेम से परमात्मा के हाथ थमाते.
युग युग के सभी गुरुओं को मेरा सादर प्रणाम
ईश्वर को भी भज लेंगे हम;पर गुरु ही मेरा भगवान्
गर खोजे धन दौलत सम्मान,
जो गुरु का स्थान न छोड़े सदा रहे धनवान.
By- Smt Shipra Sen
Jabalpur, (M.P.)
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